Director Sidharth Nagar’s New Venture – Dhappa

तमंचा नहीं, अब कलम की जरूरत-सिद्धार्थ नागर

मुंबई : बचपन में हम आईस पाईस नाम का एक खेल खेलते रहे हैं जिसका क्लाइमेक्स है धप्पा। यह खेल भले ही बच्चों का हो, लेकिन निर्देशक सिद्धार्थ नागर ने इसे अपराध से जोड़ने की कोशिश की है और फिल्म को नाम दिया ‘धप्पा’। फिल्म में यूपी की पृष्ठभूमि है जहां पुलिस प्रशासन और अपराध की दुनिया में शामिल हो चुके युवाओं के बीच चोर—पुलिस का खेल चलता रहता है जिसका अंत धप्पा के रूप में होता है। सिद्धार्थ कहते हैं कि यूपी एक ऐसे हालात में पहुंच चुका है जहां बच्चों के हाथ में कलम की बजाय तमंचा है और ये हालात क्यों पैदा हुए, यही अहम बिंदु है।

 

इस फिल्म के माध्यम से हम कहना चाहते हैं कि आज यूपी के युवाओं को तमंचों की नहीं, कलम की जरूरत है। वे पढ़ने लिखने की बजाय अपने हाथ में तमंचे ले लेते हैं लेकिन इसका अंत धप्पा के रूप में होता है यानी अंत में उन्हें पुलिस की गोली लगती है। आईस पाईस का अंत भी धप्पा के रूप में ही होता है इसलिए हमने इस फिल्म की कहानी को प्राचीन खेल से जोड़कर मैसेज देने की कोशिश की है। सिद्धार्थ कहते हैं कि इस फिल्म के लिए यूपी की लोकेशन को इसलिए चुना गया क्योंकि इसकी कहानी ही यूपी बेस्ड है जहां पढ़ाई से ज्याद तमंचों का जोर रहा है। आज हालात भले ही काबू में हैं लेकिन एक दौर ऐसा भी था, जब तमंचों की दहशत थी। युवक बहुत जल्दी भ्रमित हो जाया करते थे और अपराध के रास्ते पर निकल पड़ते थे। हमने उसी दौर को दिखाने की कोशिश की है कि अब वक्त बदल चुका है। तमंचों की नहीं, अब कलम की ताकत चलती है।

यूपी सरकार फिल्मों को कितना मदद दे रही है? इस सवाल पर सिद्धार्थ कहते हैं कि मैं तो यही कहूंगा कि यूपी की किसी एक सरकार ने नहीं, बल्कि तमाम सरकारों ने फिल्म की नीति को आगे बढ़ाने की कोशिश की है। हर सरकार का यह प्रयास रहा है कि फिल्मों को राज्य में ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहन मिले। आज स्थिति ये है कि बड़ी से बड़ी फिल्मों की शूटिंग यूपी में हो रही है।

—अनिल बेदाग—